Monday 16 July 2012

जब भी मिला राह में


जब भी मिला राह में हौंसला बढ़ाता रहा
ज़िन्दगी का सच आईने में दिखाता रहा

हमने भी कदम बढ़ा दिये उसी राह की ज़ानिब
वो आगे आगे चलकर हमे राह दिखाता रहा

जब दिल हुआ परेशां या दुःख का पड़ा साया
वो रात भर ज़ख्मों पर मरहम लगाता रहा

जब जब बढ़ी अहबाबों की मुखालफ़त
वो मज़बूरियाँ बताकर उन्हें मनाता रहा

जब भी मज़लूम रही महरूमियों से ज़िन्दगी
वो नगमए फसले गुल सुनाकर जोश दिलाता रहा

जब लिखी मैंने अपनी बेरब्त कहानी
वो मिसरो में लफज़ो को सलीके से सजाता रहा

बुझने लगी जब लौ ए जिंदगानी
वो बनके उम्मीद ए चराग शमा जलाता रहा ....वीर 'विशेष'
(dedicated to someone special)

Monday 9 July 2012

हर सूरत में उसी का अक्स रहा

हर सूरत में उसी का अक्स रहा
वो जहां भी रहा नूर ए नज़र रहा

 जब दिल फिगार और दर्द नाबर्दाश्त हुआ
वो बनके दुआ मेरी दवाओं में रहा

बदल गए हालात और जिस्मानी जज़्बात
 पर रूह में उसी का अहसास रहा

जब भी गहराया जीवन में अँधेरा
वो बनके सवेरा मेरे साथ रहा

जब जब डगमगाई जीवन कि नैया
 वो बनके खिवैया मुझे तिरता रहा

निजाम ए कुदरत है भूल जाना 'वीर'
पर वो कज़ा ए राह में भी मेरे साथ रहा ... 'वीर विशेष'

Wednesday 4 July 2012

    'माँ को ना परखो '


माँ को कभी शब्दों में ना परखो 

हो ही जाती है गिरती उम्र में गलतियाँ
पर हर गलती पर उसे यूँ तो ना डांटो 
कुछ तो याद करो कभी तो प्यार करो 
क्योंकि...
माँ बेटे पर और भी प्यार लुटाती थी
 जब डांटकर उसे सीने से लगाती थी ...



जल भर लाती थी महतारी

जल भर लाती थी महतारी 
सूख गयी वो नदियां सारी 
ऊँची बिल्डिंग या हरियाली 
मानव ने चुन ली बर्बादी 

खेतों की शोभा थी न्यारी 
चंहुदिशा बस थी हरियाली 
जल में जीवन बसता था और 
नदी का यौवन खिलता था

कल कल का वो गीत सुनाती
छल छल गगरी छलके थी
अमृत से पानी को पाकर
जुग जुग शीश नवाती थी

अब नदियां पर माले हैं और
नीर के दिल पर छाले है
सिकुड गया संसार नदी का
शुरू हुआ व्यापर धनी का

ऊँची बिल्डिंग या हरियाली
मानव ने चुन ली बर्बादी ...
(वर्तमान में नदियों के दयनीय स्तिथि से उपजी एक निराशा से बाहर निकलने की कशमकश में )..... "वीर विशेष"

Tuesday 3 July 2012

उसे बर्बाद होना था



उसे बर्बाद होना था 
खुदा का साथ जो ना था 

और कमज़ोर हो गया 
जहां मजबूत होना था 

बिखर गया फूल की मानिंद 
जहां उसे शूल होना था 

खुदाया खेल ये कैसा के
तकाज़ा वक्त का तय था 

जिसे गुलशन में होना था 
कफस में कैद वो क्यूँ था ...'वीर विशेष'