जब भी मिला राह में हौंसला बढ़ाता रहा
ज़िन्दगी का सच आईने में दिखाता रहा
हमने भी कदम बढ़ा दिये उसी राह की ज़ानिब
वो आगे आगे चलकर हमे राह दिखाता रहा
जब दिल हुआ परेशां या दुःख का पड़ा साया
वो रात भर ज़ख्मों पर मरहम लगाता रहा
जब जब बढ़ी अहबाबों की मुखालफ़त
वो मज़बूरियाँ बताकर उन्हें मनाता रहा
जब भी मज़लूम रही महरूमियों से ज़िन्दगी
वो नगमए फसले गुल सुनाकर जोश दिलाता रहा
जब लिखी मैंने अपनी बेरब्त कहानी
वो मिसरो में लफज़ो को सलीके से सजाता रहा
बुझने लगी जब लौ ए जिंदगानी
वो बनके उम्मीद ए चराग शमा जलाता रहा ....वीर 'विशेष'
(dedicated to someone special)